Wednesday 2 March 2016

को न याति वशं लोके



मूलम्-
को न याति वशं लोके मुखं पिण्डेन पूरितः ।
मृदङ्गो मुखलेपेन करोति मधुरं ध्वनिम् ॥
पदविभागः-
कः न याति वशं लोके मुखं पिण्डेन पूरितः । मृदङ्गः मुखलेपेन करोति मधुरं ध्वनिम् ॥
अन्वयः-
लोके कः मुखं पिण्डेन पूरितः वशं न याति? मृदङ्गः मुखलेपेन मधुरं ध्वनिं करोति ॥
प्रतिपदार्थः-
लोके = जगति ; in this world
मुखं = मनुष्यपक्षे– आस्यं, मृदङ्गपक्षे– ध्वनये ताडनस्थानं ; mouth ; part where the instrument is striken for playing music (pun on the word)
पिण्डेन = मनुष्यपक्षे– अन्नकवलेन, मृदङ्गपक्षे– आर्द्रपिष्टेन ; with a morsel of food; by a paste of flour (pun on the word)
पूरितः = भरितः ; filled
वशं = अधीनं ; into control
न याति = न भवति; does not go/ reach/ get
मृदङ्गः = सङ्गीते वाद्यवस्तु लयकारकः ; a South-Indian musical instrument for rhythm and accompaniment
मुखलेपेन = मुखस्य अवलेपनेन ; by mouth smearing
मधुरं = श्रोतुं सुन्दरं, श्रवणसुखकरं ; sweet
ध्वनिं = शब्दं ; sound
करोति = आचष्टे ; does
तात्पर्यम्-
लोके कः मनुष्यः अन्नकवलेन दानेन दातुः अधीनो न भवति? मृदङ्गः अपि पिण्डेन ( = आर्द्र-पिष्टस्य-लेपनेन) पूरितः सन् सुन्दरं शब्दं करोति, मधुरं ध्वनति।

Who does not get into control when mouth is filled with morsel of food? Mṛdaṅga makes beautiful sound when its mouth is smeared (with piṇḍa = paste of flour). [For better quality of sound, some (wheat flour-) paste is applied to the part where the instrument is striken for playing music. Poet compares it with giving someone their mouthful (of food) and getting them into his control on that basis.]

इस जगत में, कौन पिण्ड मुख को देने से अपने वश नही होता? पिण्ड लगाने से मृदङ्ग भी अच्छी ध्वनि करता है। (पिण्ड का अर्थ- मनुष्य के पक्ष में अन्न का निवाला है। और यहाँ मृदङ्ग के पक्ष में उस के बजाने के स्थान पर लेपन करने वाले आटे की घोल से है)

प्रश्नाः-
      १.      लोके मनुष्यः कथं वशं याति?
      २.      मृदङ्गः कथं मधुरं ध्वनति?
      ३.      अत्र पिण्डशब्दस्य कौ अर्थौ?
      ४.      ‘मुखलेपेन’ इत्यत्र कः समासः?

No comments:

Post a Comment